ऊजळा ऊजळा दिन कटे काळी अँधियारी रात मरवण उडिके महलां म कद आवोला नाथ

मारवाड़ी लोकोक्तियाँ-मुहावरे-कहावतें

ब्यांव बिगाड़े दो जणा , के मूंजी के मेह , बो धेलो खरचे न'ई , वो दडादड देय !

आळस नींद किसान ने खोवे , चोर ने खोवे खांसी , टक्को ब्याज मूळ नै खोवे , रांड नै खोवे हांसी//

कदे 'क दूध बिलाई पीज्या, कदे 'क रहज्या काचो। कदे 'क नार बिलोवै कोनी, कदे 'क चूंघज्या बाछो।

कुत्तो सो कुत्ते नै पाळे , कुत्तोँ सौ कुत्तोँ नै मारै। कुत्तो सो भैंण घर भाई , कुत्तोँ सो सासरे जवाँई। वो कुत्तो सैं में सिरदार , सुसरो फिरे जवाँई लार।

आडे दिन से बासेड़ा ई चोखो जिको मीठा चावळ तो मिल

दूर जंवाई फूल बरोबर , गाँव जंवाई आधो , घर जंवाई गधे बरोबर , चाये जिंया लादो.....

दूर जंवाई फूल बरोबर , गाँव जंवाई आधो , घर जंवाई गधे बरोबर , चाये जिंया लादो.....

नागा रो लाय में कांई बळै ?

नाई री जान में सैंग ठाकर।

मिन्नी रो तो रोळ व्हे ,अर उंदरा रो घर भांगे।

काणती (काणी) भेड़ को न्यारो ही गवाड़ो !

पाड़ोसी रै बरस'सी तो छांटा तो अठै ई पड़सी !

मतलब री मनुहार जगत जिमावै चूरमा !

थूक सूं गांठयोड़ा,किता दिन संधै?

मामैरो ब्यांव़ माँ पुुरसगारी, जीमो बेटा रात अंधारी !

थाळी फूट्यां ठीकरो ई हाथ में आया करै !

पांचूं आंगळयां सरीसी कोनी हुव़ै !

थोथो शंख पराई फूँक सै बाजै !

घर रा छोरा घट्टी चाटे, पाडौसी ने आटो !

घी घल्योड़ो तो अँधेरा में बी छानों कोनी रैवे !

कुम्हार कुम्हारी ने तो कोनी जीतै, गधैड़ै का कान मरोड़ै।

बळयोड़ी बाटी ई उथळीजै कोनी।

बकरी रे मूंढा में मतीरो कुण खटणदे ?

करमहीन किसनियो, जान कठै सूं जाय। करमां लिखी खीचड़ी, घी कठै सूं खाय ।।

घर तो घोस्यां का बळसी, पण सुख ऊंदरा भी कोनी पावै।

कागलां री दुरासीस सूं ऊंट कौनी मरै !

पाणी पीणो छाणियो, करणो मनरो जाणियो !

आंधी पीसे , कुत्ता खाय , पापी रो धन परले जाय !

ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डरै !

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